Thursday, September 8, 2011

जो कभी अपना था आज गैर है ,रह गए सुनकर अवाक् उस आवाज़ को क्या कहें तुम कहें कि आप ,
जो सिला बने थे आज वो घूलघूल कर टूट गए कानों में ,जब गूंज उठी आवाज़ कोई मंदिर की घंटियों जैसी ""रजनी"

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